डेरा सचखंड बल्लां: रविदासिया धर्म की एक ऐतिहासिक यात्रा

डेरा सचखंड बल्लां की स्थापना 

डेरा श्री 108 संत सर्वण दास सचखंड बल्लां की स्थापना पंजाब, भारत के जालंधर जिले के गाँव बल्लां में 1900 के दशक की शुरुआत में पीपल दास महाराज जी ने की थी । श्री 108 संत बाबा पीपल दास जी महान संत थे। वह अपने पांच साल के बेटे सरवन दास के साथ बठिंडा के गिल पट्टी गांव से जालंधर जिले के बल्लन गांव में आए । उनकी पत्नी शोभावंती जी के निधन के बाद पीपल दास जी महाराज अपने पाँच साल के पुत्र के साथ बठिंडा जिले के गाँव गिल पट्टी से आकर जालंधर जिले के गाँव बलां में आ गए । इस तरह पीपल दास जी और सरवन दास जी ने गिल पट्टी को छोड़ा और यात्रा करते हुए बलां गाँव पहुंचे । वहाँ एक सूखा हुआ पीपल का पेड़ था, जिसे पीपल दास जी ने नियमित रूप से पानी देना शुरू किया। कुछ समय बाद, पेड़ फिर से हरा-भरा हो गया । गांव का शांत और सुरम्य वातावरण उन्हें अपनी आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए उपयुक्त लगा । 

पीपल दास महाराज जी ने गाँव के लोगों को आसपास की भूमि दान करने के लिए प्रेरित किया और संगत ने कुछ भूमि दान भी दी और इसके बाद संत सरवन दास जी महाराज ने वहाँ पर तप किया और आज सतगुरु रविदास महाराज जी के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल बन गया, और आज देश विदेश से सतगुरु रविदास महाराज जी के करोड़ों अनुयायियों इस डेरा से जुड़े हैं । डेरा ने दुनिया में गुरु रविदास जी के नाम पर कई मंदिरो, गुरूद्वारो एवं धामों का भी निर्माण किया है ।

संत सरवन दास जी का नेतृत्व

Sant Sarwan Das Ji, Dera Sachkhand Ballan Jalandhar
संत सरवन दास जी 

1928 में पीपल दास महाराज जी के निधन के बाद, उनके पुत्र सरवन दास जी डेरा सचखंड बलां के गद्दीनशीन बने । वे दिन का अधिकांश समय ध्यान और सेवा में बिताते थे और शिक्षा के प्रति गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने बच्चों को शिक्षित करने के लिए विद्यालयों और तकनीकी विद्यालयों में उदारतापूर्वक दान दिया। उनके प्रयासों से महिलाओं की शिक्षा पर भी ध्यान दिया गया।  उनके नेतृत्व में डेरा का मुख्य उद्देश्य सामाजिक रूप से वंचित समुदायों के बीच सतगुरु रविदास महाराज जी की शिक्षाओं का प्रसार करना था । उन्होंने विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के विस्तार का समर्थन किया । समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना संत सरवन दास महाराज जी का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था, जिसने डेरे की लोकप्रियता को भी बढ़ाया । उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए डेरा में एक चिकित्सा केंद्र की स्थापना की, और उनके नाम पर कई अस्पताल भी स्थापित किए गए । 11 जून 1972 को उनके निधन के बाद, संत हरि दास जी ने डेरा की जिम्मेदारी संभाली ।

संत हरि दास जी 11 जून 1972 से 6 फरवरी, 1982


ब्रमलींन संत हरि दास जी महाराज , डेरा सचखंड बल्लां
संत हरि दास जी
संत हरि दास जी 1885 में जालंधर के गढ़ा गांव में जन्मे थे। उन्होंने संत पीपल दास जी से दीक्षा ली और संत सरवन दास जी के साथ सेवा का कार्य किया। उन्होंने गुरमुखी सीखने के साथ-साथ अध्यात्म के पथ पर अपना जीवन समर्पित कर दिया। संत हरि दास जी समाज सुधार, शांति और धार्मिक समर्पण के प्रतीक थे। उन्होंने सीर गोवर्धनपुर, बनारस में गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर का शिलान्यास किया और कई सालों तक समाज में निस्वार्थ सेवा का कार्य किया। उन्होंने

संत हरि दास जी का स्वर्गवास 6 फरवरी, 1982 को हुआ। उनके योगदान को याद करते हुए, उनकी बरसी हर साल 6 फरवरी को मनाई जाती है।

डेरा सचखंड बल्लां में संत गरीब दास जी का योगदान

संत गरीब दास जी
Sant Garib Das Ji, Dera Sachkhand Ballan Jalandhar
संत गरीब दास जी 

संत गरीब दास जी डेरा के चौथे गद्दी-नशीन 7 फरवरी 1982 को बने।  उन्हें अपने पूर्वज संतों से अध्यात्म और मानव सेवा की समृद्ध विरासत प्राप्त हुई। उनका जन्म 1925 में जालंधर जिले के आदमपुर के पास जलबे गाँव में श्रद्धेय पिता नानक चंद जी और माता हर कौर जी के परिवार में हुआ। संत निरंजन दास जी को उनके सहायक के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने संत सरवन दास जी द्वारा शुरू की गई डेरा की गतिविधियों को अधिक उत्साह और समर्पण के साथ जारी रखा। वह एक कुशल वैद्य थे और गंभीर बीमारियों से पीड़ित रोगियों का इलाज करते थे। वह बहुत कम बोलते थे और हमेशा संगत की सेवा में लगे रहते थे। वह अक्सर कहते थे कि सेवा और सिमरन में ज्यादा बोलने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने 1985 में संत रामानंद जी के साथ पहली बार इंग्लैंड का दौरा किया। इंग्लैंड के बर्मिंघम में प्रसिद्ध गुरु रविदास मंदिर का शिलान्यास और उद्घाटन उन्हीं के द्वारा किया गया था। भारत और विदेशों में कई अन्य गुरु घरों का शिलान्यास भी उन्हीं के द्वारा किया गया। उन्होंने बड़ी संख्या में विदेशी भक्तों को नामदान दिया और गुरु रविदास मिशन में युवा पीढ़ी को शामिल किया। उन्होंने यूके का छह बार, अमेरिका का तीन बार और कनाडा का एक बार दौरा किया।

उनका मानव कल्याण में सबसे बड़ा योगदान संत सरवन दास जी की याद में जिला जालंधर के कूपुर-धयपुर (कठार) में संत सरवन दास चैरिटेबल हॉस्पिटल की स्थापना थी। उन्होंने अपने जीवन में रोगियों की सेवा की और 22 अक्टूबर 1982 को इस अस्पताल की स्थापना करके गरीब रोगियों की देखभाल को अपने निधन के बाद भी सुनिश्चित किया। बेगमपुरा शहरसाप्ताहिक का शुभारंभ करना भी गुरु रविदास मिशन को जनता तक पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

उन्होंने गुरु रविदास आईटीआई कॉलेज, फगवाड़ा में संत सरवन दास मेमोरियल टीचिंग ब्लॉक की नींव रखी। उन्होंने डेरा में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए एक मॉडल सराय का निर्माण किया। जालंधर-पठानकोट रोड, गाँव बल्लां पर संगत और डेरा की ओर से एक भव्य 'संत सरवन दास मेमोरियल गेट' का निर्माण करवाया,  जिसका उद्घाटन 11 जून 1994 को संत ईश्वर दास जी, गोपाल नगर, जालंधर द्वारा करवाया गया ।

11 जून 1994 (संत सरवन दास जी की बरसी समारोह के दिन) को उन्होंने संगत से कहा कि जून 1994 के अंत में श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धन पुर वाराणसी उत्तर प्रदेश में एक बड़ा समागम आयोजित करने की घोषणा की ।  

यह यात्रा 16 जून से 23 जून 1994 तक रेल द्वारा की गई, जिसमें विदेशों से उनके कई अनुयायी भी शामिल हुए । वाराणसी में अत्यधिक गर्मी और उमस थी। जब संगत ने महाराज जी से पूछा कि उन्होंने इस मौसम में यह यात्रा क्यों चुनी, तो उन्होंने उत्तर दिया कि "मैं आपको वह स्थिति दिखाना चाहता था जिसमें हमने इस मंदिर का निर्माण किया था।" इस अवसर पर एक विशाल धर्मिक समागम आयोजित किया गया था। जो लोग इस यात्रा का हिस्सा थे, वे इस यात्रा को कभी नहीं भूलेंगे ।

वाराणसी से लौटने के केवल एक महीने बाद वे बीमार हो गए। उन्हें जालंधर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्होंने 23 जुलाई 1994 को दोपहर 2.55 बजे अंतिम सांस ली। उनके पार्थिव शरीर को 23 से 25 जुलाई 1994 तक संत हरी दास सत्संग हॉल में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया और फिर उनका अंतिम संस्कार किया गया। हजारों लोगों ने उन्हें अश्रुपूर्ण विदाई दी।

 
डेरा सचखंड बल्लां में संत निरंजन दास महाराज जी का योगदान

Sant Niranjan Das Ji, Dera Sachkhand Ballan Jalandhar
धर्म गुरु संत निरंजन दास जी 

संत निरंजन दास जी 25 जुलाई 1994 को डेरे के गद्दी-नशीन बने। वे एक दूरदर्शी, विचारक, अपनी मान्यताओं में अडिग, दिव्य रूप से मुक्त, सरलता में परिपूर्ण, सुशिक्षित, सहजता से उपलब्ध, और सच में आम आदमी के संत हैं। उनका हृदय संगत के साथ धड़कता है और उनकी आत्मा संगत के साथ कंपित होती है। उनका दृष्टिकोण गतिशील है। वह बाबा पीपल दास जी, स्वामी सरवन दास जी, संत हरी दास जी, संत गरीब दास जी और अपने पूर्व वजीर कौम के अमर शहीद संत रामानंद जी की समृद्ध विरासत का प्रतीक हैं।

संत निरंजन दास महाराज जी का जन्म 6 जनवरी 1942 को जिला जालंधर में अलावलपुर के पास रामदासपुर गाँव में हुआ था उनके पिता का नाम श्री साधु राम और उनकी माता का नाम श्रीमती रूकमणी था । उनके पिता और माता संत पीपल दास जी और संत सरवन दास जी के अनुयायी थे । जब भी वे घर के कार्यों से मुक्त होते थे वे डेरा बल्ला के संतो से मिलने जाते थे और पवित्र वाणी सुनते थे और डेरा में सेवा करते थे । उनके साथ उनके प्यारे बेटे निरंजन दास भी सेवा करते थे । संत निरंजन दास जी ने 8 साल की उम्र में संत सरवन दास जी के साथ रहना शुरू कर दिया था। संत सरवन दास बच्चे को देखकर बहुत खुश होते थे और बच्चे की मीठी बातें सुनते थे ।

निरंजन दास जी के पिता मा० साधु राम जी ने अपने बेटे को संत सरवन दास जी के पवित्र चरणों में अर्पित करने का फैसला लिया । उस समय से संत निरंजन दास जी डेरा में ही रहे है और डेरा में सेवा के लिए वे विविध कार्यों में भाग लेने लगे है जिस तरह से वे काम करते और जिस गति से वह अपने कार्यों को पूरा करते थे उसे देखते हुए संत सरवन दास जी ने उनका नाम “हवाई गिर”  रखा वह संत सरवन दास जी और बाद में संत हरि दास जी और संत गरीब दास जी के साथ सेवा करते हुए बड़े हुए ।

संत गरीब दास जी के निधन उपरांत 25 जुलाई 1994 को संत निरंजन दास जी को डेरा सचखण्ड बला के गद्दीनशीन बन गए  । उन्होने मानव जाति के सेवा में समर्पित सभी परियोजनाओं के विकास के साथ शुरूआत की ।

डेरा ने उनके मार्ग दर्शन में जबरदस्त प्रगति की ।

गद्दी-नशीन के रूप में, संत रामानंद जी की सहायता से उन्होंने संत सरवन दास चैरिटेबल अस्पताल, कठार, श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धन पुर वाराणसी, बेगमपुरा शहर साप्ताहिक पत्रिका, संत सरवन दास मॉडल स्कूल फगवाड़ा जिसमें अप्रैल 2004 से छात्रों का दाखिला शुरू हुआ , 10 नवंबर 2004 को संत सरवन दास चैरिटेबल आई हॉस्पिटल की भी नींव रखी गई, जिसका उद्घाटन 15 फरवरी 2007 को हुआ ।, गुरु रविदास सत्संग भवन, सिरसगढ़ (हरियाणा) में गुरु रविदास धर्म स्थान, कत्रज पुणे में गुरु रविदास धर्म स्थान, बाबा पीपल दास जी साधना स्थल, गिल पट्टी बठिंडा और अन्य सामाजिक कार्यों में गहरी रुचि ली। सतगुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धन पुर वाराणसी में 31 कलश स्थापित किए गए। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए चार मंजिला भवन का निर्माण किया गया और वाराणसी में अतिरिक्त भूमि खरीदी गई। यूरोपीय देशों में रह रहे सतगुरु रविदास के भक्तों ने काशी मंदिर के लिए एक स्वर्ण पालकी भेंट की। काशी मंदिर के केंद्रीय गुंबद का स्वर्ण मंडन 30 जनवरी 2010  को गुरु रविदास जी की 633वीं जयंती के शुभ अवसर पर पूरा हुआ और उद्घाटन किया गया। इसके लिए संत रामानंद महाराज जी के साथ विदेशों में सतगुरु रविदास महाराज जी के अनुयायियों से मिलने के लिए अनेक यात्राएँ कीं और कई देशों में सतगुरु रविदास महाराज जी के डेरों की नींव भी रखी ।

साल 2000 से हर साल जयंती पर्व पर तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए जालंधर से सतगुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धन पुर वाराणसी और वापस एक विशेष ट्रेन चलाई जाती है। यह विशेष ट्रेन यात्रा सभी की इच्छा है और एक बहुत ही दिलचस्प यात्रा है।

इन सभी वर्षों में, कौमी शहीद ब्रह्मलीन संत रामानंद जी ने डेरे के कार्यों के संचालन और परियोजनाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और संत निरंजन दास जी के संरक्षण में डेरे के कार्यों को सफलतापूर्वक संचालित किया। संत सुरिंदर दास बावा जी ने भी दैनिक कार्यों के प्रबंधन में बड़ी मदद की। अमर शहीद संत रामानंद जी की हत्या के बाद, संत सुरिंदर दास बावा जी ने संत निरंजन दास जी को पूरी निष्ठा से समर्थन दिया ।

यह संत निरंजन दास जी की दूरदर्शिता और दृष्टि थी कि उन्होंने बदलते परिदृश्य में 30 जनवरी 2010  रविदासिया धर्म की घोषणा की संत समाज द्वारा उनका समर्थन किया गया और 'अमृत बाणी सतगुरु रविदास महाराज जी' को सर्वोच्च रविदासिया तीर्थ स्थल श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में स्थापित किया।

नई रविदासिया धर्म की घोषणा को जहाँ रविदासिया समुदाय ने खुले दिल से स्वीकार किया वहीं इस कदम से रविदासिया समुदाय में आत्म-सम्मान, स्वतंत्रता और गरिमा का उदय हुआ है। अब वह दूसरों पर पूजा-पाठ के लिए निर्भर नहीं हैं। उनके अपने निर्भीक भगवान, जो गरीबों के प्रिय हैं, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं सतगुरु रविदास महाराज जी है संत निरंजन दास जी का मानना है कि आने वाले समय में रविदासिया धर्म विश्व का सबसे बड़ा धर्म होगा।

"नीचै ऊच करै मेरा गोबिंद काहू ते न डरै।"

डेरा ने अखिल भारतीय रविदासिया धर्म संगठन (Regd.) की स्थापना भी की है।

संत निरंजन दास महाराज जी ने सतगुरु रविदास मिशन के लिए आगे बढ़ने में चट्टान की तरह मजबूत हैं। संपूर्ण रविदासिया समुदाय उनके साथ है।

कौम के अमर शहीद संत रामानंद जी

कौम के अमर शहीद संत रामानंद जी
अमर शहीद संत रमानंद महाराज जी 

अमर शहीद संत रामानंद जी रविदासिया समुदाय की एक अद्वितीय शख्सियत थे । उनके विचार, उनके कार्य और उनकी शहादत अद्वितीय थी । गुरु रविदास मिशन को फैलाने के क्षेत्र में उनके जैसा कार्य आज तक किसी ने नहीं किया। वह गुरु रविदास मिशन को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में एक योद्धा थे। उन्होंने संत गरीब दास जी और संत निरंजन दास जी के साथ विश्व के प्रमुख देशों का व्यापक दौरा किया । वह मंच से अमृत बाणी और गुरु रविदास जी की शिक्षाओं का उच्चारण करते थे और श्रोताओं में सन्नाटा छा जाता था। उनके अमृत बाणी के आंतरिक अर्थों की व्याख्या लोगों के दिल को छू जाती थी।

गुरु रविदास मिशन को पूरी दुनिया में फैलाना उनका महान कार्य था और इसे करने की उनकी उत्सुकता और भी महान थी। वे कवि, लेखक, गायक, इंजीनियर, कृषक, शिक्षक, वैद्य, प्रशासक, वक्ता, और एक दिव्य संत थे। उन्होंने लगातार प्रयास किया कि लोग सच्चे संगत में एकजुट हों।

वे लेखकों, वक्ताओं, गायकों और अन्य लोगों को मान्यता देते थे, जिन्होंने गुरु रविदास मिशन और डॉ. अंबेडकर मिशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने ऐसे 51 से अधिक प्रतिष्ठित व्यक्तियों को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया।

संत रामानंद जी का जन्म 2 फरवरी 1952 को रामदासपुर (अलावलपुर के निकट) में जालंधर जिले में अपने पिता मेहंगा राम और माता जीत कौर जी के परिवार में हुआ। वह बाल्यकाल से ही त्याग की मूर्ति थे। उन्होंने 1972 में दोआबा कॉलेज, जालंधर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने संतों की संगति में रहना पसंद किया। परिवार के सदस्य इसे पसंद नहीं करते थे। अधिकांश समय वह सिमरन में लगे रहते थे। संत गरीब दास जी द्वारा उन्हें बख्शीस मिली । जब भी संत गरीब दास जी और गद्दीनशीन संत निरंजन दास जी विदेश यात्रा पर जाते, संत रामानंद जी उनके साथ होते थे। उन्होंने विदेश संगत को नाम सिमरन के लिए प्रेरित किया। उनकी संगत में बैठकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

वे एक कुशल प्रशासक थे और डेरे के मुख्य कार्यकारी के रूप में, उन्होंने संत निरंजन दास जी के निर्देशन में डेरे का संचालन बहुत कुशलता से किया। उन्होंने हर परियोजना के प्रदर्शन की निगरानी खुद की।

संत रामानंद जी को पूरी दुनिया में गुरु रविदास जी की शिक्षाओं और बाणी के प्रचार-प्रसार के लिए हमेशा याद किया जाएगा। वह एक थके-हारे प्रचारक थे। वह लाखों की भीड़ के मंच को संभाल सकते थे। वह मृदुभाषी थे लेकिन अपने सिद्धांतों में सख्त थे।

उन्होंने बेगमपुरा शहरसाप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया और भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें दलित साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। वह इतिहास में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 28 मई 2007 को ब्रिटिश संसद में गुरु रविदास जी पर भाषण पढ़ा। वह बाणी के एक विद्वान थे।

संत रामानंद जी की शहादत का तत्काल प्रभाव यह था कि भारत में पूरी रैदासिया कौम एक मंच पर आ गई। जब हम रैदासिया समुदाय के इतिहास का गहन अध्ययन करते हैं, तो पाते हैं कि ये लोग अपनी खोई हुई महिमा को पुनः प्राप्त करने के लिए शुरू से ही प्रयासरत रहे हैं। उन्होंने अपनी स्वतंत्रता के लिए कई आंदोलन चलाए।

इन सभी आंदोलनों का उद्देश्य रविदासिया कौम की अलग पहचान स्थापित करना था। विदेशों में रविदासिया समुदाय ने पहले ही अपने समुदाय को रविदासिया के रूप में पंजीकृत करवा लिया है और उन्होंने अपने हरिका निशान भी संबंधित अधिकारियों के साथ पंजीकृत करा लिया है। अब पूरे विश्व में रविदासिया कौम को एक समुदाय के रूप में पहचाना जा रहा है।

वियना ऑस्ट्रीया हमले की निंदनीय घटना

24 मई 2009 को, ऑस्ट्रिया के वियना में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान संत निरंजन दास महाराज और संत रामानंद जी पर छह लोगों ने चाकू और पिस्तौल से हमला कर दिया। इस हमले में दोनों संत घायल हुए, साथ ही चौदह अन्य लोग भी घायल हुए। संत रामानंद जी की अगली सुबह मृत्यु हो गई । यह हमला सिख कट्टरपंथियों द्वारा किया गया था, जो मानते थे कि डेरे के संतों ने सिखों की पवित्र पुस्तक, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का अनादर किया है । जबकि डेरा ने हमेशा से श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पूरा सत्कार और आदर किया है । इस घटना के बाद पंजाब में हिंसा भड़क उठी, जिसमें पुलिस के साथ झड़पों में तीन लोगों की मौत हो गई।

रविदासिया धर्म और अमृतवाणी सतगुरु रविदास महाराज जी की स्थापना

वियना हमले के बाद, डेरा सचखंड ने सतगुरु रविदास महाराज जी के मंदिरों में गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ समाप्त कर दिया और केवल सतगुरु रविदास महाराज जी के 41 पदों का पाठ करने का निर्णय लिया ।

यह घोषणा श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में 10 लाख से अधिक रविदासिया अनुयायियों की उपस्थिति में, श्री गुरु रविदास जी की 633वीं जयंती के शुभ अवसर पर की गई।

श्री 108 संत निरंजन दास जी के द्वारा 30 जनवरी 2010 को सतगुरू रविदास महाराज जी के जन्म स्थान सीर गोवर्धनपुर वाराणसी उत्तर प्रदेश से में एक नए धर्म "रविदासिया धर्म" की औपचारिक घोषणा की । डेरे ने अपने नए धार्मिक ग्रंथ "अमृतवाणी सतगुरु रविदास जी" का भी स्थापना की, जिसमें तगुरु रविदास महाराज जी के 240  शब्द शामिल हैं ।

इस कदम का सभी अनुयायियों ने जोरदार स्वागत किया। उन्होंने जोर-जोर से नारे लगाए जो बोले सो निर्भय, सतगुरु रविदास महाराज की जय । पूरी दुनिया के रविदासिया समुदाय में अत्यधिक खुशी का माहौल था। अमृतबाणी सतगुरु रविदास महाराज जीको श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में स्थापित किया गया । उस रात सभी लोगों ने पूर्णिमा में सतगुरु रविदास महाराज जी का दर्शन किया। ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा गया था। यह रविदासिया धर्म की घोषणा के लिए एक शुभ संकेत था ।

 

श्री गुरु रविदास गेट का शिलान्यास और अन्य कार्य

श्री गुरु रविदास गेट, वाराणसी का शिलान्यास 25 मई 1997 को श्री कांशीराम जी द्वारा किया गया था। इस गेट का उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने 16 जुलाई 1998 को किया।

संत सरवन दास हाई स्कूल, हदियाबाद, फगवाड़ा का शिलान्यास 16 अप्रैल 2002 को किया गया और इस स्कूल का उद्घाटन संत निरंजन दास जी ने 5 अप्रैल 2004 को किया।

श्री गुरु रविदास मंदिर, सिरसगढ़, हरियाणा का शिलान्यास 31 जुलाई 2003 को किया गया। इस मंदिर का उद्घाटन संत निरंजन दास जी ने 31 जुलाई 2005 को किया।

श्री गुरु रविदास मंदिर, कात्रज, पुणे, महाराष्ट्र का शिलान्यास 7 दिसंबर 2003 को किया गया और इस मंदिर का उद्घाटन संत निरंजन दास जी ने 7 दिसंबर 2005 को किया।

श्री गुरु रविदास सत्संग भवन का शिलान्यास 12 मार्च 2000 को किया गया और इसका उद्घाटन 15 फरवरी 2007 को संत सरवन दास जी की जयंती पर किया गया।

संत सरवन दास चैरिटेबल आई हॉस्पिटल का शिलान्यास डेरे में 10 नवंबर 2004 को किया गया था और इसका उद्घाटन 15 फरवरी 2007 को संत सरवन दास जी की जयंती पर हुआ।

15 फरवरी 2007 को संत सरवन दास जी की जयंती पर श्री गुरु रविदास सत्संग भवन में पवित्र स्वर्ण पालकी की स्थापना संत निरंजन दास जी द्वारा की गई।

21 फरवरी 2008 को श्री गुरु रविदास जनम स्थान मंदिर, वाराणसी में श्री गुरु रविदास महाराज जी की जयंती के अवसर पर पवित्र स्वर्ण पालकी की स्थापना की गई ।








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