सतगुरु रविदास महाराज जी के जन्म के बारे इतिहासकारों का मत

 इतिहासकारों का मत सतगुरु रविदास महाराज जी के जन्म बारे । 


सतगुरु रविदास महाराज जी का जन्म स्थान मंदिर सीर गोवर्धन पुर वाराणसी उत्तर प्रदेश
सतगुरु रविदास महाराज जी का जन्म स्थान मंदिर सीर गोवर्धन पुर वाराणसी उत्तर प्रदेश 


चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पंदरास ।
दुखियों के कल्यान हित, प्रगटे श्री रविदास ।।

 

दूसरों का कल्याण करने वाली अनमोल मानव जाति जब मानव के द्वारा ही शोषित होती है और जब इस शोषण रूपी पाप का घड़ा भर जाता है तो धरती इस अन्याय के बोझ को सहन नहीं कर पाती। तब कई शताब्दियों के पश्चात् कोई महान आत्मा मानव-रूप में धरती पर अवतार धारण करती है और उस अन्याय और शोषण को समाप्त कर शोषितों के भाग्य को जगाती है, अधर्म का नाश कर धर्म का प्रसार करती है ।

ऐसी ही विषम परिस्थितियों में पन्द्रहवीं शताब्दी में धरती पर बढ़ रहे जुल्म एवं अन्याय हो रहे ही तब जगतगुरु सतगुरु रविदास महाराज जी का जन्म हुआ ।

सद्गुरु रविदास जी का जन्म 1433 विक्रमी माघ सुदी पूर्णिमा को वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ । कई इतिहासकार आपका जन्म आषाढ़ माह की संक्रांति को भी बताते हैं और अन्य कई इतिहासकार आप जी के जन्म के बारे में भिन्न-भिन्न समय का वर्णन करते हैं, जिनका संक्षिप्त ब्यौरा निम्नलिखित है :

 

1.          पंजाबी स्रोत :

a.          ज्ञानी बरकत सिंह आनंद

(जन्म साखी भगत रविदास)

प्रविष्टा 11, सन् 1471

b.          मगू राम बहडूवालिया (श्री गुरु रविदास मिशन)

माघ पूर्णिमा 1456  वि. सम्वत्

ज्ञा. काला सिंह नामधारिया

(जन्म साखी भगत रविदास जी की)

1 आषाढ़, 1471 वि. सम्वत्

c.          श्री जसवंत सिंह उर्फ जमना दास

श्री रविदास प्रकाश)

1 हाड़ 1456 वि. सम्वत्

d.          श्री अमर सिंह परदेसी

(श्री रविदास भगत जीवन कथा)

1471 विक्रमी सम्वत्

e.          श्री काशी नाथ उपाध्याय

(गुरु रविदास)

1433 ई.

f.           डॉ. लेखराज परवाना

(श्री गुरु रविदास - जीवन ते किरतां)

माघ पूर्णिमा, 1433 सम्वत्

g.          डॉ. जसबीर सिंह सावर

(भगत रविदास स्रोत पुस्तक)

माघ पूर्णिमा 1433 वि. सम्वत्

h.          डॉ. कर्म सिंह

(हउ बणजारो राम को)

माघ पूर्णिमा 1433 वि. सम्वत्

i.           डॉ. कृष्णा कलसिया

(गुरु रविदास रूप-सरूप)

माघ पूर्णिमा 1433 वि. सम्वत्

j.           डॉ. काहन सिंह नाभा

(श्री गुरु रविदास मिशन)

(महान कोश)

1456 वि. संवत्

 

2.          हिंदी स्रोत :-

 

a.          डॉ. राम कुमार वर्मा

(हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास)

1445 वि. सम्वत्

b.          डॉ. धर्मपाल सैनी

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब एक परिचय)

1500 वि. सम्वत्

c.          डॉ. जोगिन्द्र सिंह

(संत रैदास)

1500 वि. सम्वत्

d.          डॉ. गोबिन्द त्रिगुणायत

(हिंदी निर्गुण कविधारा)

1415 वि. सम्वत्

e.          महात्मा राम चरण कुरील

(भगवान रविदास की सत्य कथा)

1415 वि. सम्वत्

f.           डॉ. भागवत् मिश्र

(संत रैदास और उनका पंथ)

g.          डॉ. प्रभाकर माचवे

(निर्गुण संत काव्य)

1527 वि. सम्वत्

h.          डॉ. वी. पी. शर्मा

(संत गुरु रविदास वाणी)

1455-56 वि. सम्वत्

i.           हिंदी शब्दकोश

1455 वि. सम्वत्

j.           डॉ. संगम लाल पाण्डेय

(संत रैदास)

1450 ई०

k.          आचार्य पृथ्वी सिंह आज़ाद

(रविदास दर्शन)

1433 वि. सम्वत्

 

संस्थाएँ :-

1.   भारत सरकार : 1433 वि. सम्वत्

2.   आल इंडिया गुरु रविदास फाउन्डेशन जालंधर 1376 ई. (1433 वि.)

3.   गुरु रविदास साहित्य अकेडमी, पंजाब 1376 ई. (1433 वि.)

4.   गुरु रविदास चेयर, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ 1376 ई. (1433 वि.)

5.   गुरु रविदास चेयर, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर 1376 ई. (1433 वि.)

(पावन गाथा श्री गुरु रविदास जी)

 

सभी विवाद तथा शंकाएं तब समाप्त हो गईं, जब श्री गुरु रविदास जी के वंश में से ही उनके पड़पौत्र संत कर्मदास जी, जो कि गुरु गोबिंद सिंह जी के पांच प्यारों में से थे और श्री धर्मदास जी के समकालीन थे, ने प्रस्तुत दोहा परिणाम स्वरूप प्रस्तुत किया :-

 

चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पंदरास ।

दुखियों के कल्यान हित, प्रगटे श्री रविदास । ।

 

इसकी प्रस्तुति पृथ्वी सिंह आज़ाद ने भी अपनी पुस्तक 'रविदास दर्शन' के नंबर 72 पर की है। ज्योतिष के अनुसार भी 1433 विक्रमी माघ पूर्णिमा पृष्ठ वाले दिन ही रविवार आता है और यही कारण है कि सद्गुरु रविदास जी का नामकरण भी 'रविदास' ही रखा गया। अगर हम विद्वानों की अलग-अलग राय के अनुसार देखें तो अन्य किसी भी जन्म-तारीख के साथ रविवार और पूर्णिमा एक साथ नहीं आते। सभी शोधों के बाद यह प्रमाणित हो चुका है कि सद्गुरु रविदास जी का जन्म माघ महीने की पूर्णिमा, 1433 विक्रमी संवत् में हुआ ।

 

सद्गुरु रविदास जी की माता का नाम कलसां और पिता का नाम संतोख दास था। दादा कालू और दादी का नाम लखपति था । परन्तु जन्म तारीख की तरह सद्गुरु जी के माता-पिता के नामों के बारे में भी विद्वानों का एक मत नहीं है। भाई वरियाम सिंह चंदड़ ने गुरु रविदास जी के दादा का नाम 'कालू तथा दादी का नाम लखपति बताया है। इसी प्रकार ज्ञानी काला सिंह नामधारी ने दादी का नाम लखपति बताया है तथा दादा के नाम के बारे में कोई जिक्र नहीं किया । बैलवीडियार प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद के संपादक ने रविदास जी के पिता का नाम रघु तथा माता का नाम घुरबीनिया बताया है। इसी तरह महन्त जसवंत सिह सति दरबारी ने पिता का नाम रघु या राघव तथा माता का नाम घुरबीनिया बताया है।

 

पृथ्वी सिंह आज़ाद ने पिता का नाम रघु या राघवदास और बचपन का नाम मान दास बताया है। माता का नाम कर्मा देवी व्यक्त किया है। भविष्यपुराण के संपादक ने भी पिता का नाम मानदास दर्शाया है। इसी तरह डॉ. मनमोहन सिंह, प्रो. दर्शन सिंह, कला शुक्ला, पदमगुरचरण सिंह, हरभजन सिहं रत्न, डॉ. योगेन्द्र सिंह, स्वामी राघव दास, अखिल भारतीय रविदास महासभा के प्रधान, चन्द्रिका प्रशाद जिज्ञासु, शिव मंगल राम वैद्य, डॉ. धर्मपाल मैनी, संत मलूक दास आदि विद्वानों ने संत रविदास जी के पिता का नाम 'रघु' या राघवदास स्वीकार किया है तथा माता के दो नाम प्रस्तावित किये हैं:- एक घुरबीनिया तथा दूसरा करमा देवी। ज्ञानी बरकत सिंह आनंद, राजिन्द्र सिंह सचदेव, प्रो. प्रकाश सिंह, प्रो. पाखर सिंह तथा आल इंडिया आदि धर्म मिशन, नई दिल्ली ने सद्गुरु रविदास के पिता का नाम सन्तोखा या सन्तोखदास तथा माता का नाम कौस देवी, दयारी, कलसी (कौसा देवी) स्वीकार किये हैं।

 

चन्द्रिका प्रशाद जिज्ञासु ने दो शब्दों धुरबीनिया तथा घुरबीनिया को गलत प्रचलित उच्चारण का दोष मानते हुए कहा है कि वास्तव में यह नाम दघुरणिया (रघुराणी) है अर्थात रघु की पत्नी ।

 

गुजराती साहित्य में पिता का नाम मान दास दर्शाने की बजाये रविदास जी के गुरु का नाम मानदास बता दिया गया है।

 

'रैदास रामायण' के कर्ता ने रविदास जी के बुजुर्गों की दो पीढियां बताई हैं। एक के अनुसार रविदास जी के पिता का नाम राहू तथा माता का नाम करमा माना है। राहू के पिता का नाम हरिचन्द तथा माता का नाम चतुरकौर बताया गया है।

 

सद्गुरु महाराज जी के जन्म-स्थान संबंधी भी अनेक विद्वानों ने अपने भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत किये हैं। अपनी-अपनी शोधानुसार भिन्न-भिन्न स्थानों को उन्होंने सद्गुरु का जन्म-स्थान बताया है।

 

शिव मंगल राम वैद्य प्रधान, भारती प्रगतिशील शोषित दलित वर्ग महासभा, मंडुआडीह, बनारस ने अपने एक खोज-पत्र में रविदास जी का जन्म स्थान मुडूआडीह सिद्ध किया है।

 

राधेश्याम मिश्र के पास जो हस्तलिखित वाणी संग्रह है, जो बहुत प्राचीन बताया जाता है, उस ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर सिद्ध होता है कि संत रविदास जी का जन्म-स्थान मंडुआडीह ही है

 

 

काशी विच्च मांडूर स्थाना।

शूद्र वर्ण करत गुजराना । ।

मांडूर नगर लीन अवतारा ।

रविदास शुभ नाम हमारा ।।

 

पृथ्वी सिंह आज़ाद ने रविदास जी का जन्म स्थान बनारस की प्रसिद्ध चमार बस्ती मंडुआडीह को ही माना है।

 

डॉ. भाई जोध सिंह ने भी गुरु रविदास जी का जन्म-स्थान मुडुआडीह ही स्वीकार किया है।

 

भविष्य पुराण में जो -'शंकराचार्य तथा रविदास के शास्त्रार्थ' का प्रसंग आया है, उस में शास्त्रार्थ का स्थान काशी नगर द्वार के बाहर बताया जाता है । यह नगर द्वार के बाहर शब्द मंडुआडीह की पुष्टि करता है।

 

काशी महात्मय में भी 'शंकराचार्य से जिस शूद्र की मुलाकात का जिक्र आता है वह स्थान मंडुआडीह ही बताया जाता है।

 

बैलवेडियर प्रैस इलाहाबाद ने जो रैदास जी की वाणी प्रकाशित की है, उसके संपादक ने पन्ना एक पर यह माना है कि रविदास जी बनारस में पैदा हुए थे :-

 

यह महात्मा भी कबीर साहिब की तरह काशी में पैदा हुए।

 

प्रो. दर्शन सिंह ने भी रविदास जी की जन्मभूमि लहरतारा (लहर लता) के नजदीक मंडुआडीह जो वर्तमान वाराणसी के पश्चिम की तरफ है, हुआ माना है।

 

कला शुक्ला ने अपनी रचना 'संत रविदास' में इस महापुरुष का जन्म-स्थान मंडूह बताया है, जिसका पहला नाम मंडुआडीह था, वाराणसी नगर के बाहर, पश्चिम की ओर एक ग्राम था। ग्राम का नाम मंडूह था। मंडूह अपने आप में बिल्कुल ग्राम ही था। इसी तरह डॉ. परशुराम चतुर्वेदी, पंडित बेनी प्रशाद शर्मा, डॉ. धर्मपाल मैनी, डॉ. जोगिन्द्र सिंह ने मंडुआडीह को ही श्री गुरु रविदास जी की जन्मभूमि बताया है ।

 

परन्तु सद्गुरु रविदास जी को मानने वाली संगत मान चुकी है कि सद्गुरु रविदास जी का जन्मस्थान सीरगोवर्धनपुरा है। जहां आज उनकी नामलेवा संगत सद्गुरु रविदास जी का एक विशाल मंदिर बना हुआ है। जिसके दर्शन करने के लिए देश-विदेश से संगत आती है।

 

जहां महाराज जी की जन्म तारीख, जन्म स्थान और उनके माता-पिता संबंधी अनेक मत हैं, वहां आप जी के नाम भी भिन्न-भिन्न बताए गए हैं जैसे : रैदास, रायदास, रविदास, रूईदास, रमदास इत्यादि ।

 

मुझे तो यह सब कुछ उस समय के पढ़े-लिखे और अपने आप को चतुर-चालाक समझने वाले वर्ग की साजिश और उनकी एक सोची समझी चाल ही नज़र आती है जिन्होंने गुरु रविदास जी के जीवन को एक पहेली बनाकर लोगों के सामने इसलिए प्रस्तुत किया ताकि उनको चाहने वाला समाज इन पहेलियों में ही उलझ कर रह जाये। गुरु जी की वाणी एवं उनके उपदेशों का समाज पर अधिक प्रभाव हो जाने पर कहीं उनका अपना सिंहासन न डोल जाये। आखिर सत्य को कब तक छिपाया जा सकता है? जिस प्रकार कहीं भी उगा चंदन का वृक्ष पूरे वन को सुगंधित किए बिना नहीं रहता, उसी प्रकार महापुरुषों के जीवन का प्रकाश अंधकार को दूर कर अपना प्रकाश दिखा ही देता है। सूर्य चाहे बादलों में छिपा हो, आखिर प्रकाश दे ही देता है। महाराज जी के जन्म और जन्मस्थान संबंधी अनेक ठोस प्रमाण प्राप्त हुए हैं, जिनमें संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज आप जी के चालीस शबद ही प्रमाण के लिए संतोषजनक हैं।

 

सद्‌गुरु रविदास जी ने स्वयं अपनी वाणी में लिखा है :-

मेरी जात कुटबांढला ढोर ढोवंता नितहि बानारसी आस पासा ।।

(पंना 1283)

 

परन्तु प्रमाणित प्रमाण मिल जाने के पश्चात् भी शरारती तत्वों को संतोष नहीं हुआ। जब उनकी सभी साजिशें नाकामयाब सिद्ध हुईं तो उन्होंने सीर-गोवर्धनपुरा और मण्डुयाडीह की समस्या को उत्पन्न कर दिया। कुछ ने तो गुरु जी को चमत्कारी, जादूगर आदि के रूप में प्रस्तुत कर दिया। बहुत ही चालाक और चतुर मनुवादी लेखकों ने तो यहां तक लिख दिया कि गुरु रविदास जी रामानंद के अभिशाप के कारण चमार जाति में पैदा हुए थे।  

कई प्रकार की मनघड़न्त कहानियाँ लिखकर लेखकों ने एक तीर से तीन निशाने साधने की कोशिश की है।

पहला तो यह कि कोई भी महान योद्धा, क्रांतिकारी, संत, भक्त, शूद्र जाति से नहीं हो सकता, केवल ब्राह्मण ही हो सकता है।

 

दूसरा - बुरे कर्मों सदका ही जीव नीच जाति में जन्म लेता है ।

तीसरा - जाति व्यवस्था प्रकृति की देन है।

 

परंतु ये सभी धारणाएं, यह सभी बातें निराधार हैं। अगर जाति प्रथा प्रकृति की देन होती तो किसी की भी जाति का पता उसके पूछने पर या सर्टीफिकेट देखने से ही न होता, बल्कि उस की शक्ल, रंग, रूप देखकर ही पता लगा जाता कि वह किस जाति से है

 

श्री गुरु नानक देव जी ने तो अमीर मलिक भागों के पकवान छोड़ कर गरीब बढ़ई भाई लालो की रूखी-सूखी रोटी जो उसकी मेहनत की कमाई थी, को खाना स्वीकार किया था, पर रामानंद जी को यही मेहनत से कमाई हुई रोटी भ्रष्ट कैसे कर सकती है? इससे स्पष्ट होता है कि सदियों से ही दलितों के साथ अन्याय होता चला आ रहा है। सत्ताधारी वर्ग दलितों के इतिहास को अपनी इच्छानुसार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते आ रहे हैं. दलित वर्ग में पैदा हुए महापुरुषों के जीवन को पेचीदा बनाकर पेश करते आ रहे हैं। अतः मेरा श्री गुरु रविदास विचारधारा को प्रस्तुत करने वाले सभी लेखकों एवं पाठकों से विनम्र निवेदन है कि वे सद्गुरु रविदास महाराज जी के जन्म, जन्म-स्थान, माता का नाम, पिता का नाम निम्न अनुसार ही लिखें, ताकि पाठक और श्रद्धालु किसी प्रकार की उलझन में न रहें।


गुरु रविदास महाराज जी के जीवन का परिचय  

नाम                                       श्री गुरु रविदास महाराज जी

माता का नाम                          कलसाँ

पिता का नाम                          संतोख दास

जन्म स्थान                              सीर गोवर्धनपुर, नज़दीक मंडुआडीह वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

 जन्म तिथि                              चौदह सौ तैंतीस 1433 (विक्रमी) माघ सुदी पूर्णिमा 1377 ई.

 दिन                                       रविवार

संतान                                    कोई नहीं

ब्रहमलीन वर्ष                          1527 ई.

ब्रह्मलीन स्थल                   चितौड़गढ़


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