“हरि मानव एकता संत सम्मेलन” 2024 हजूर महाराज संत स्वामी गुरदीप गिरी जी महाराज की रहनुमाई में, स्वामी जगत गिरी आश्रम में पठानकोट में आयोजित किया गया ।

"हरि मानव एकता संत सम्मेलन" 2024 हजूर महाराज संत स्वामी गुरदीप गिरी जी महाराज की रहनुमाई में, स्वामी जगत गिरी आश्रम पठानकोट में आयोजित किया गया । 

"हरि मानव एकता संत सम्मेलन" 2024 हजूर महाराज संत स्वामी गुरदीप गिरी जी महाराज की रहनुमाई में



स्वामी जगत गिरी आश्रम, पठानकोट में हर वर्ष 25 दिसंबर को "हरि मानव एकता संत सम्मेलन" का आयोजन स्वामी जगत गिरी के परिनिर्वाण दिवस पर किया जाता है। इस अद्वितीय आयोजन में देश-विदेश से संगत पहुचती है यह कार्यक्रम आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का एक अद्भुत संगम है, जहां न केवल अध्यात्मिक संदेशों का प्रचार-प्रसार होता है, बल्कि समाज सेवा के लिए भी कई अनुकरणीय कार्य किए जाते हैं।



परिनिर्वाण दिवस की पूर्व संध्या पर हजूर महाराज जी के प्रवचन हिन्दी मे दिए, क्यों

कि पंजाब से बाहर हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से संगत यहाँ पहुंची थी ।

सतगुरु रविदास महाराज जी की अमृतवाणी का शब्द

संत तुझी तनु संगति प्रान ॥ सतिगुर गिआन जानै संत देवादेव ॥ १ ॥

संत ची संगति संत कथा रसु ॥ संत प्रेम माझै दीजै देवा देव ॥१॥रहाउ ॥

संत आचरण संत चो मारगु संत च ओल्हग ओल्हगणी ॥२ ॥

अउर इक मागउ भगति चिंतामणि ॥ जणी लखावहु असंत पापीसणि ॥३ ॥

रविदासु भणै जो जाणै सो जाणु ॥ संत अनंतहि अंतरु नाही ॥ ४॥ २ ॥ (पन्ना ४८६)

पाठी साहब जी ने पढ़ा जिस पर महाराज जी ने अपने प्रवचन दिए ।

हजूर महाराज जी ने बताया की किस प्रकार संत स्वामी जतग गिरी जी की जन्म गाँव जतार में साल 1925 में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है । स्वामी जतग गिरी जी साल 1965 में पठानकोट के चक्की में आए और 10 साल तक इस स्थान पर तप किया और साल 1975 में ज्योति जोत समा गए । इससे पहले स्वामी जतग गिरी जी जम्मू के गाँव पलोटा साहब जो मुख्य गद्दी है साल 1947 से 1965 तक वहाँ रहे और हजारों परिवारों को नाम शब्द से जोड़ा, वहाँ आज भी बहुत सुन्दर भवन सतगुरु रविदास महाराज जी का बना हुआ है ।

हजूर महाराज जी ने अपनी लिखी अपनी किताब “शांति पथ” में बताया है कि स्वामी जतग गिरी जी द्वारा दिया आखरी नामदान हजूर महाराज जी को ही दिया था, उसके बाद स्वामी जतग गिरी जी ज्योति जोत समा गए थे । हजूर महाराज जी स्वामी जतग गिरी जी के ज्योति जोत समाने के बाद साल 1975 मे लगभग 15 वर्ष की आयु में ही आश्रम के गद्दीनशीन हो गए थे । तब से ही स्वामी जगत गिरी जी का बरसी समागम हर साल मनाया जाता है ।

महाराज जी ने अपने प्रवचनों में बताया कि संत का चोला धारण करना आसान है परंतु सभी संत नहीं हो सकते और पूर्ण संत बिरले ही पाए जाते है । सतगुरु रविदास महाराज जी ने अपनी वाणी में संत को परमात्मा का तन बताया है और संगत को परमात्मा के प्राण बताया है । संगत को संत से भी अधिक महत्व सतगुरु रविदास महाराज जी ने अपनी वाणी में दिया है ।

पूर्व संध्या पर हजूर महाराज जी के प्रवचनों के पश्चात आरती और अरदास की गई। आश्रम का माहौल अत्यंत भव्य और आध्यात्मिक था। देश-विदेश से आई संगत की उपस्थिति और आश्रम की साज-सज्जा ने आयोजन को अद्वितीय बना दिया। गुरु जी के अट्टू लंगर सतत रूप से बरताए जा रहे थे, जिससे श्रद्धालुओं को सेवा और प्रसाद का आनंद मिला। इसके साथ ही, आश्रम की ओर से कैन्टीन की सुविधा भी प्रदान की गई, जिससे संगत को अतिरिक्त सहूलियतें उपलब्ध हुईं।

25 दिसंबर "हरि मानव एकता संत सम्मेलन"  मुखय कार्यक्रम में 

अगले दिन की शुरुआत सुबह 5:30 बजे ध्यान साधना के कार्यक्रम से हुई, जिसमें संगत ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इसके बाद मंदिर में सतगुरु रविदास महाराज जी की अमृतवाणी के पाठ पढे गए। इसके बाद योगा की क्लास आयोजित की गई । सुबह 10 बजे सतगुरु रविदास महाराज जी वर्ल्ड पीस टेम्पल में गुरु जी की आरती संपन्न हुई। यह मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैचारों ओर से खुला और चार दरवाजों वाला। इसके चारों ओर बहता पानी और सुंदर फूलों की क्यारियाँ इसकी शोभा को और अधिक बढ़ा देते हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक और दृश्यात्मक शांति प्रदान करता है।

इसके बाद मुख्य कार्यक्रम की शुरुवात हुई जिसमे सभी संतों ने अपने श्रद्धा सुमन स्वामी जगत गिरी जी को भेट किए । संगतों ने भी गुरु जी चरणों से जुड़कर अपने श्रद्धा सुमन भेट किए । सभी संतों के प्रवचन और कीर्तन के बाद हजूर महाराज जी के प्रवचन हुए जिसमे पाठी साहब ने सतगुरु रविदास महाराज जी की अमृतवाणी का शब्द पढ़ा..  

"चित सिमरनु करउ नैन अविलोकनो स्रवन बानी सुजसु पूरि राखउ ॥

मनु सु मधुकरु करउ चरन हिरदे धरउ रसन अंम्रित राम नाम भाखउ ॥१ ॥

मेरी प्रीति गोबिंद सिउ जिनि घटै । मै तउ मोलि महगी लई जीअ सटै ॥ २ ॥ रहाउ ॥

साध संगति बिना भाउ नही उपजै भाव बिनु भगति नही होई तेरी ॥

कहै रविदासु इक बेनती हरि सिउ पैज राखहु राजा राम मेरी ॥२॥२ ॥ (पन्ना ६९४)

जिसकी व्याख्या करते हुए हजूर महाराज जी ने सिमरन का महत्व समझाते हुए बताया कि हमें गुरु जी द्वारा दी गई शब्द धुन को सुनने का अभ्यास करना चाहिए। यह धुन हमारी आत्मा को जागृत करने का माध्यम है। मन को भंवरे की तरह बनाकर गुरु जी के चरणों से जोड़ना चाहिए। जब हम अपनी मन, बुद्धि, और ध्यान को बाहरी विकारों से हटाकर अंदर की ओर केंद्रित करेंगे, तब हमारी आत्मा सतनाम लोक तक पहुंच सकती है। गुरु जी से जुड़ने के लिए हमें सभी विकारों को त्यागना अनिवार्य है।

हजूर महाराज जी ने अपने प्रवचनों में एक गहरी आध्यात्मिक सीख दी, जिसमें उन्होंने कहा कि जैसे एक पतली कागज़ की परत पारस को सोना बनाने से रोकती है, उसी तरह हमारे विकार और अहंकार हमें सतगुरु जी से जुड़ने में बाधा डालते हैं। उन्होंने बताया कि यह आवश्यक है कि हम अपने अंदर की नकारात्मकताओं को हटाएं और गुरु की कृपा से अपने जीवन को सुनहरा और पवित्र बनाएं। आत्म-शुद्धि और सत्संग से ही हम इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

स्वामी जगत गिरी आश्रम शिक्षा, स्वास्थ्य और जरूरतमंद लोगों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत है। आश्रम ने शिक्षा स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थापना की है, जो समाज के हर वर्ग के लोगों को लाभान्वित कर रही हैं। यहां यह बताया जाता है कि कैसे आध्यात्मिकता शिक्षा और स्वास्थ्य में सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है और आध्यात्मिकता से जुड़कर हम अपने जीवन को कैसे श्रेष्ठ बना सकते हैं। आध्यात्मिकता न केवल आत्मा को शांति प्रदान करती है, बल्कि यह समाज सेवा के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनती है ।

यह आश्रम आज सतगुरु रविदास महाराज जी के संदेशों के प्रचार का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। हजूर महाराज संत स्वामी गुरदीप गिरी जी की अध्यक्षता में यह आयोजन किया जाता है। स्वामी गुरदीप गिरी जी वर्तमान गद्दीनशीन हैं और सतगुरु रविदास महाराज जी के संदेशों को पूरी दुनिया में प्रचारित कर रहे हैं।

सतगुरु रविदास महाराज जी का संदेश, जो ज्ञान, प्रेम, और सत्य की शिक्षा देता है, इस आयोजन का केंद्र बिंदु है।


प्रेम पंथ की पालकी रविदास बैठियो आय ।

सांचे सामी मिलन कू आनंद कह्यो न जाय ॥ ७० ||

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